प्रदोष व्रत

हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का बड़ा महत्त्व होता है यह व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है. प्रदोष व्रत प्रत्येक माह की त्रयोदशी को रखा जाता है हर माह में दो त्रयोदशी होती अतः प्रत्येक माह दो प्रदोष व्रत होते हैं.
प्रदोष व्रत की सारी जानकारी हम इस लेख में स्पष्ट कर रहे हैं.
1. प्रदोष कथा
प्रदोष को प्रदोष कहने के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है। संक्षेप में यह कि चंद्र को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्टों हो रहा था। भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया था अत: इसीलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा।
2 – प्रदोष व्रत विधि – प्रदोष व्रत जेसा कि हमने ऊपर बताया प्रत्येक माह की त्रयोदशी को होता है, इस दिन कोई भी व्यक्ति यह व्रत रख सकता है चाहे वह महिला हो या पुरुष. जो भी इस व्रत को धारण करना चाहे वो त्रयोदशी के दिन सुबह जल्द सूर्योदय से पहले उठकर नित्य कर्म से निवृत होकर नहाकर व्रत का संकल्प ले उसके बाद भगवान शिव की पूजा अर्चना करें, पूजा करने के लिए पूजा घर को साफ़ करें फिर उसको गाय के गोबर ले लीप ले उसके बाद अब पांच अलग अलग रंगों का प्रयोग कर रंगोली बनाये फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और शिव जी की पूजा करें। पूरे दिन किसी भी प्रकार का अन्य ग्रहण ना करें, एवं पुरे दिन भगवान् शिव का ध्यान करते रहें एवं उनसे अपनी मनोकामना एवं सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करते रहें. प्रदोष व्रत में पूजा की थाली में अबीर, गुलाल, चंदन, अक्षत (चावल), फूल, मदार के फूल, धतूरा, बिल्वपत्र, जनेउ, कलावा, दीपक, कपूर और अगरबत्ती होनी चाहिए।
3. प्रदोष व्रत फल
माह में दो प्रदोष होते हैं। अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष की महिमा अलग-अलग होती है। जैसे सोमवार का प्रदोष, मंगलवार को आने वाला प्रदोष और अन्य वार को आने वाला प्रदोष सभी का महत्व और लाभ अलग अलग है।
4. रविवार-
जो प्रदोष रविवार के दिन पड़ता है उसे भानुप्रदोष या रवि प्रदोष कहते हैं। रवि प्रदोष का संबंध सीधा सूर्य से होता है। सूर्य से संबंधित होने के कारण नाम, यश और सम्मान के साथ ही सुख, शांति और लंबी आयु दिलाता है। इससे कुंडली में अपयश योग और सूर्य संबंधी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

5. सोमवार-
जो प्रदोष सोमवार के दिन पड़ता है उसे सोम प्रदोष कहते हैं। जिसका चंद्र खराब असर दे रहा है उनको तो यह प्रदोष जरूर नियम ‍पूर्वक रखना चाहिए जिससे जीवन में शांति बनी रहेगी। यह व्रत रखने से इच्छा अनुसार फल प्राप्ति होती है। अक्सर लोग संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत रखते हैं।
6. मंगलवार-
मंगलवार को आने वाले इस प्रदोष को भौम प्रदोष कहते हैं। जिसका मंगल खराब है उसे इस दिन व्रत अवश्य रखना चाहिए। इस दिन स्वास्थ्य सबंधी तरह की समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। इस दिन प्रदोष व्रत विधिपूर्वक रखने से कर्ज से छुटकारा मिल जाता है।

7. बुधवार-
बुधवार को आने वाले प्रदोष को सौम्यवारा प्रदोष भी कहा जाता है। यह शिक्षा एवं ज्ञान प्राप्ति के लिए किया जाता है। साथ ही यह जिस भी तरह की मनोकामना लेकर किया जाए उसे भी पूर्ण करता है।
8. गुरुवार-
गुरुवार को आने वाले प्रदोष को गुरुवारा प्रदोष कहते हैं। इससे बृहस्पति ग्रह शुभ प्रभाव तो देता ही है साथ ही इसे करने से पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। अक्सर यह प्रदोष शत्रु एवं खतरों के विनाश और हर तरह की सफलता के लिए किया जाता है।

9. शुक्रवार-
शुक्रवार को आने वाले प्रदोष को भ्रुगुवारा प्रदोष कहा जाता है। अर्थात जिस शुक्रवार को त्रयोदशी तिथि हो वह भ्रुगुवारा प्रदोष कहलाती है। जीवन में सौभाग्य की वृद्धि हेतु यह प्रदोष किया जाता है। सौभाग्य है तो धन और संपदा स्वत: ही मिल जाती है।
10. शनिवार-
शनिवार को यदि तेरस है तो इसे शनि प्रदोष कहते हैं। इस प्रदोष से पुत्र की प्राप्ति होती है। अक्सर लोग इसे हर तरह की मनोकामना के लिए और नौकरी में पदोन्नति की प्राप्ति के लिए करते हैं।
11 – प्रदोष व्रत पुरे दिन रखा जाता है इस दिन कुछ भी न खाए आप चाहे तो केवल फलाहार ग्रहण कर सकते हैं. उसके अगले दिन ही आप भोजन ग्रहण करें.

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